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Bhaijaan

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रात

आओ करें गुफ्तगू के फिर ये रात नही होगी,  कल वो बात तो होगी मगर वो बात नही होगी।  भीगे थे मेहबूब के साथ भरी बरसात में एक दिन,  अब आयेंगे फिर कई सावन मगर वो बरसात नही होगी। तेरी ज़ुल्फ़ों सी शाम हो तेरे ओठों से जाम हो,  चलो मीलों दूर के ऐसी मुलाक़ात नही होगी। 

डुबकी मारो गंगा है।

एक हाथ से पुण्य करो और दुई हाथ से पाप करो, ये स्वर्ग नरक जबरन का सुतंगा है। डुबकी मारो गंगा है......... किसी ने झूठ पहना है कुछ ने फरेब ओढा है, और एक नागा बाबा नंगा है। डुबकी मारो गंगा है.........

सरकार मोहब्बत वाली

आती जाती देखी हैं कई हज़ार मोहब्बत वाली, जाने कहाँ मिलेगी कोई सरकार मोहब्बत वाली। वो साल कौन सा होगा तब लोग कैसे होंगे, मंदिरों में हुआ करेगी जब कोई इफ्तार मोहब्बत वाली।

डर लगता है।

बुलंदियों को छूने में समय कब लगता है। मुझे मंज़िल से खूबसूरत सफर लगता है। ख्वाब तो हमारे भी थे मीलों दूर जाने के, मगर उसी रास्ते में मेरा घर लगता है। बेटा घर की दहलीज़ बढ़ाने को कहता है लेकिन, क्या करें बीच में शजर लगता है। हम भी जश्न मनाते थे अपने घर में कभी, मगर अब बेटी होती है तो डर लगता है।

सरकार

गिरते को गिराने की दरकार में आ गए, जितने अपाहज नेता थे सरकार में आ गए। जो गोंच अकेले लाखों का खून चूसा करते थे, करोड़ों का पीने वास्ते परिवार में आ गए। इसकी लूट उसपर कब्जा सबका मुँह कुचलने को, ये नापाक हाथ इंसाफ के दरबार पे आ गए। जेबों पर जो मार पड़ी, दमडी पे जो हमला हुआ, सारे गरीब घर से निकल के,बाजार में आ गए।

रैन

कभी यूँ भी हम रातें गुज़ारा करते हैं, कागज़ पर लिखते हैं, मिटाया करते हैं। शहर से दूर अपने गांव की याद में, बगीचे की धूल उड़ाया करते हैं। अपने बच्चों का बचपन फिर देखने को, बूढ़े कंधों पर पोतों को घुमाया करते हैं। करीबी दोस्तों की याद में अक्सर, लाल मिर्चियाँ आंगन में सुखाया करते हैं। बड़े बदनसीब हुआ करते हैं वो बाप, जो अपना कहकर बेटियों को पराया करते हैं। कभी उस शख्स की आंखों में उतारना, दिल का दर्द जो मुस्कुराकर छुपाया करते हैं। बस इसी कश्मकश में रोज़ रहते हैं, रुकते हैं सोचते हैं फिर कलम उठाया करते हैं। कभी यूँ भी हम रातें गुज़ारा करते हैं, कागज़ पर लिखते हैं, मिटाया करते हैं।